हरिद्वार, 8 फरवरी। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में मारुति वाटिका जगजीतपुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने ध्रुव एवं प्रहलाद चरित्र का श्रवण कराते हुए बताया कि भक्ति रूपी संस्कार बाल्यकाल से ही मनुष्य के अंदर उत्पन्न होते हैं। पांच वर्ष का बालक ध्रुव अपनी सौतेली मां सुरुचि के कटु वचनों को सुनकर वन में जाकर भगवान का भजन करने लगा। भगवान ने छोटे से बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भक्त धु्रव पद प्रदान कर दिया। आज भी ध्रुव तारा मंडल के सबसे चमकदार तारे के रूप में भक्त ध्रुव सबको भक्ति की प्रेरणा दे रहा है। इसी प्रकार से राक्षस कुल में जन्म भक्त प्रहलाद बाल्य काल से ही भगवान की भक्ति करते थे। उसके पिता हिरण्यकश्यपू ने उसवे मारने के लिए अनेक उपाय किए पर भगवान ने प्रहलाद का बाल भी बांका होने नहीं दिया और स्वयं नरसिंह के रूप में खंभ से प्रकट होकर हिरणकश्पयू का संहार कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की। शास्त्री ने बताया जो व्यक्ति भक्ति मार्ग पर चलता है। भगवान हर पल हर घड़ी उसकी रक्षा करते हैं। श्रद्धालु भक्तो को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा का श्रवण करते हुए शास्त्री ने बताया कि भादो के महीने में रोहिणी नक्षत्र में बुधवार को रात्रि बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य मथुरा में हुआ।